रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के राजनयिकों द्वारा लिखा गया एक ओपिनियन आर्टिकल $1$ दिसंबर को 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में प्रकाशित हुआ, जिसने भारत में एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है।
जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन, फ्रांस के राजदूत थियरी माथू, और ब्रिटेन की हाई कमिश्नर लिंडी कैमरन ने इस लेख में यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस और राष्ट्रपति पुतिन पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।
लेख में लगाए गए गंभीर आरोप
तीनों राजनयिकों ने अपने लेख का शीर्षक दिया: “World wants the Ukraine war to end, but Russia doesn't seem serious about peace” (दुनिया यूक्रेन युद्ध का अंत चाहती है, लेकिन रूस शांति को लेकर गंभीर नहीं लगता)।
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अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन: तीनों ने कहा कि रूस अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है और यूक्रेन में निरंतर हमले कर रहा है।
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नागरिकों को निशाना: उनका कहना है कि रूस रोजाना यूक्रेन के रिहायशी इलाकों में अंधाधुंध हमले कर रहा है। रूस घर, अस्पताल, स्कूल और जरूरी ढांचे को निशाना बनाता है, जिससे आम नागरिक, यहाँ तक कि बच्चे भी मारे जा रहे हैं।
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शांति प्रयासों में बाधा: तीनों राजनयिकों ने इस युद्ध को निर्दय और आक्रामक करार दिया और कहा कि दुनिया शांति चाहती है, लेकिन रूस शांति की कोशिशों को आगे नहीं बढ़ने दे रहा।
🇮🇳 भारत की प्रतिक्रिया: विदेश मंत्रालय नाराज
खास बात यह है कि यह लेख उसी समय छपा है, जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन $4$ दिसंबर को भारत आने वाले हैं, जिसकी वजह से इसकी टाइमिंग पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस लेख पर हैरानी और नाराजगी जताई है। मंत्रालय ने कहा कि:
"किसी तीसरे देश के रिश्तों पर इस तरह से सार्वजनिक सलाह देना सही कूटनीतिक तरीका नहीं है।"
MEA अधिकारियों का कहना है कि लेख का समय बहुत असामान्य है। ऐसे समय में यह लेख भारत और रूस के संबंधों को प्रभावित करने की कोशिश जैसा लगता है। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी इस लेख की आलोचना की और इसे 'विषैला' तथा कूटनीतिक नियमों का उल्लंघन करार दिया। उनके अनुसार, इसका मकसद भारत में रूस-विरोधी माहौल बनाना और भारत-रूस की पुरानी दोस्ती पर सवाल उठाना है।
🇷🇺 रूस का जवाबी आर्टिकल
तीनों राजनयिकों का लेख छपने के दो दिन बाद, $3$ दिसंबर को टाइम्स ऑफ इंडिया ने रूस के भारत में राजदूत डेनिस अलीपोव का भी जवाबी आर्टिकल प्रकाशित किया।
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अलीपोव का आरोप: अलीपोव ने आरोप लगाया कि पश्चिमी राजनयिकों का यह आर्टिकल यूक्रेन युद्ध और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है, जिसका उद्देश्य भारतीय जनता को गुमराह करना है।
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यूरोप पर शांति भंग करने का आरोप: अलीपोव ने कहा कि असल में यूरोप ने ही यूक्रेन में शांति को कई बार खराब किया। उन्होंने $2014$ में यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के हटाए जाने को पश्चिम समर्थित कदम बताया।
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मिंस्क समझौते में बाधा: उन्होंने दावा किया कि यूरोप ने मिंस्क समझौतों को ठीक से लागू नहीं होने दिया, $2022$ में शांति वार्ता रोक दी, और $2025$ में भी अपने राजनीतिक हितों के कारण जंग रोकने की कोशिशों में बाधा डाल रहा है।