भारत की सीमा से लगे नेपाल के मधेश प्रांत में राजनीतिक अस्थिरता लगातार बढ़ती जा रही है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि पिछले दो महीने के भीतर तीसरे मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। बुधवार को मुख्यमंत्री सरोज कुमार यादव विधानसभा में विश्वास मत हासिल न कर पाने के बाद पद से हट गए।
कैसे बढ़ा संकट? सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सरोज कुमार यादव को पहले ही विवादित तरीके से मुख्यमंत्री बनाया गया था। उनकी नियुक्ति को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें लंबे समय तक असर डालने वाले फैसले लेने से रोक दिया था और 24 घंटे के भीतर विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया था।
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सदस्य संख्या: मधेश विधानसभा में कुल $107$ सदस्य हैं। विश्वास मत हासिल करने के लिए $54$ वोटों की जरूरत थी।
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समर्थन: मुख्यमंत्री यादव के पास केवल $25$ सदस्यों का समर्थन था, जिनमें से एक सदस्य निलंबित भी था। इसलिए उनका पद पर टिकना मुश्किल था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि यदि विश्वास मत नहीं मिला, तो संविधान के अनुच्छेद $168$ के अनुसार नई सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी। अदालत ने यह भी माना कि मौजूदा सरकार का गठन अनुच्छेद $168(2)$ के विरुद्ध था, क्योंकि सबसे बड़े दल या गठबंधन को मौका दिए बिना ही मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया था।
राजनीतिक अस्थिरता के कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या संविधान से नहीं, बल्कि नेताओं की राजनीतिक चालों और सत्ता लोलुपता से पैदा हुई है। पिछले दो महीनों में हुई घटनाएं बताती हैं कि प्रांत में स्थिरता कितनी कम है:
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पहला इस्तीफा: $10$ अक्टूबर को जनमत पार्टी के मुख्यमंत्री सतीश कुमार सिंह ने इस्तीफा दिया।
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दूसरा इस्तीफा: इसके बाद एलएसपी के जितेंद्र सोनल को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन वह भी विश्वास मत न मिलने के कारण एक महीने में ही हट गए।
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तीसरा इस्तीफा: फिर यूएमएल के सरोज कुमार यादव को रातोंरात एक होटल में शपथ दिला दी गई। यह सबसे विवादित कदम था। बाद में, संघीय सरकार ने प्रांतीय प्रमुख को ही पद से हटा दिया।
अब आगे का रास्ता क्या होगा?
मधेश विधानसभा में $10$ पार्टियों का प्रतिनिधित्व है। वर्तमान स्थिति यह है कि कोई भी दल अकेले या दो-दो के गठबंधन से भी बहुमत नहीं जुटा सकता।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, प्रांत को बचाने के लिए पार्टियों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम (Minimum Common Programme) बनाकर एक स्थिर सरकार बनानी होगी। बार-बार इस्तीफा और सत्ता की लड़ाई जनता का विश्वास तोड़ रही है। अगर पार्टियाँ नहीं संभलीं तो अगले चुनाव में जनता उन्हें सख्त सबक सिखा सकती है।
बुधवार की घटना: यादव विश्वास मत से पहले सभा में पहुँचे, लेकिन विपक्षी दलों ने पूरी तरह बहिष्कार कर दिया और सभी सीटें खाली थीं। अब मधेश में फिर से नई सरकार बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।