अंतरराष्ट्रीय बाजार से लेकर स्थानीय बाजारों तक, सोने की कीमतों में एक बार फिर उछाल देखने को मिल रहा है, और यह अपने पीक के करीब पहुँच गया है। चीन, यूरोप और दुनिया के अन्य देशों के साथ-साथ, भारत का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी सोना खरीदने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है। सोने की इस बढ़ती 'भूख' ने भारत के सामने एक ऐसी समस्या खड़ी कर दी है, जिसकी उम्मीद सरकार को भी नहीं थी: यह समस्या है देश की आर्थिक सेहत का खराब होना।
करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) में अप्रत्याशित वृद्धि
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) क्रमिक रूप से बढ़कर $12.3$ अरब अमेरिकी डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का $1.3\%$ हो गया है। यह वृद्धि अप्रत्याशित है, क्योंकि पिछली तिमाही में CAD जीडीपी का मात्र $0.3\%$ था।
जानकारों का मानना है कि सर्विसेज एक्सपोर्ट और रेमिटेंस की मजबूत वृद्धि के बावजूद, व्यापारिक व्यापार घाटे (Merchandise Trade Deficit) में तेज वृद्धि के कारण यह घाटा बढ़ा है। CAD का बढ़ना देश की बाहरी वित्तीय स्थिरता के लिए एक चिंता का विषय होता है।
गोल्ड इंपोर्ट ने बिगाड़ी सेहत
CAD बढ़ने का सबसे बड़ा विलेन सोने का आयात (Gold Import) रहा है। क्रिसिल, आईसीआईसीआई बैंक रिसर्च और एमके ग्लोबल के आकलन के अनुसार:
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सोने का आयात तिमाही-दर-तिमाही लगभग $150\%$ बढ़कर दूसरी तिमाही में $19$ अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
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इस भारी आयात ने वस्तु घाटे को बढ़ा दिया।
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इसके विपरीत, वस्तु निर्यात में क्रमिक आधार पर गिरावट आई, क्योंकि भारतीय शिपमेंट पर उच्च अमेरिकी टैरिफ लागू हो गए।
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कुल वस्तु निर्यात लगभग $109$ अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि आयात बढ़कर लगभग $197$ अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
अच्छी खबर यह है कि सर्विस एक्सपोर्ट (Service Export) में दोहरे अंकों में वृद्धि हुई। क्रिसिल का अनुमान है कि तिमाही में आईटी और व्यावसायिक सेवाओं की प्राप्तियाँ बढ़कर $101.6$ अरब अमेरिकी डॉलर हो गईं। नेट सर्विस एक्सपोर्ट में साल-दर-साल $14\%$ का इजाफा देखने को मिला, जबकि रेमिटेंस बढ़कर $36$-$39$ अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जिसने वस्तु घाटे के व्यापक अंतर की भरपाई करने में कुछ मदद की।
कैपिटल अकाउंट में भी गिरावट
बाहरी संतुलन के लिए एक और बुरी खबर कैपिटल अकाउंट सरप्लस से आई, जिसमें भारी गिरावट आई और यह पिछली तिमाही के $8$ अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर $0.6$ अरब अमेरिकी डॉलर या जीडीपी का $0.1\%$ रह गया। एमके ग्लोबल ने एफडीआई (FDI) और एफपीआई (FPI) दोनों में कमजोर विदेशी निवेश को इसका कारण बताया। एफआईआई ने मुनाफावसूली की और एफडीआई का प्रवाह धीमा रहा।
फाइनेंशियल फ्लो कमजोर होने के साथ, भारत का भुगतान संतुलन (Balance of Payment) वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में $11$ अरब अमेरिकी डॉलर के घाटे में चला गया। इसके परिणामस्वरूप, तिमाही के दौरान आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में कुल मिलाकर $10.9$ अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट देखी गई।
दिग्गज फर्म का अनुमान और रुपये पर दबाव
एमके ग्लोबल ने वित्त वर्ष 2026 के लिए अपने CAD अनुमान को पहले के $1.2\%$ से बढ़ाकर जीडीपी का $1.4\%$ कर दिया है। यह अनुमान सोने के आयात में वृद्धि (जो $22\%$ बढ़ने की उम्मीद है) और नेगेटिव एक्सपोर्ट ग्रोथ के कारण लगाया गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि रुपये में कमजोरी का रुख बना रहेगा। एमके ग्लोबल का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 के अंत तक अमेरिकी डॉलर/रुपया $88$-$91$ के दायरे में कारोबार करने की संभावना है। वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियाँ, उच्च टैरिफ और मजबूत घरेलू मांग आने वाली तिमाहियों में बाह्य संतुलन पर दबाव बनाए रखेगी, जिससे रुपये पर भी दबाव रहेगा।