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तमिलनाडु में हिंदी पर बैन की अटकलें, सरकार ने विधानसभा में नहीं रखा बिल, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Wednesday, October 15, 2025

मुंबई, 15 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। तमिलनाडु सरकार द्वारा बुधवार को विधानसभा में हिंदी भाषा के इस्तेमाल पर प्रतिबंध से जुड़ा बिल पेश किए जाने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि सरकार पूरे राज्य में हिंदी के होर्डिंग्स, बोर्ड, फिल्मों और गानों पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है। बताया गया कि मंगलवार रात सरकार ने कानूनी विशेषज्ञों के साथ एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई थी, जिसके बाद इस बिल को पेश किए जाने की उम्मीद जताई जा रही थी। हालांकि बुधवार को विधानसभा में ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया।

तमिलनाडु विधानसभा का विशेष सत्र 14 अक्टूबर से शुरू हुआ है, जो 17 अक्टूबर तक चलेगा। इस सत्र में अनुपूरक बजट अनुमान भी पेश किए जाने की संभावना है। वहीं, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सरकार और केंद्र के बीच हिंदी भाषा को लेकर लंबे समय से मतभेद बने हुए हैं। इस साल मार्च में स्टालिन सरकार ने राज्य के बजट 2025-26 में रुपए के सिंबल ‘₹’ को हटाकर उसकी जगह तमिल अक्षर ‘ரூ’ लगाया था, जो ‘रुबाई’ शब्द का पहला अक्षर है और तमिल में रुपए को दर्शाता है।

मुख्यमंत्री स्टालिन लगातार केंद्र सरकार की तीन भाषा नीति का विरोध करते रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा सरकार राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है। स्टालिन के मुताबिक, तमिलनाडु की दो-भाषा नीति यानी तमिल और अंग्रेजी से शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के क्षेत्र में सकारात्मक असर पड़ा है। भारत में तीन भाषा नीति की शुरुआत 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हुई थी। इसका उद्देश्य छात्रों को स्थानीय, राष्ट्रीय और एक अंतरराष्ट्रीय भाषा सिखाना था। वर्ष 2020 में इसे संशोधित कर नई शिक्षा नीति लागू की गई, जिसमें यह कहा गया कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया। राज्यों और स्कूलों को अपनी सुविधा के अनुसार तीन भाषाएं चुनने की छूट दी गई है। प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है, जबकि मिडिल क्लास तक छात्रों को तीन भाषाओं का अध्ययन करना जरूरी है। गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह विकल्प अंग्रेजी या किसी अन्य भारतीय भाषा का हो सकता है। वहीं, 11वीं और 12वीं कक्षा में स्कूल चाहें तो विदेशी भाषा को भी एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में दे सकते हैं।

सीएम स्टालिन ने फरवरी में कहा था कि जबरन हिंदी थोपे जाने से बीते 100 वर्षों में 25 उत्तर भारतीय भाषाएं खत्म हो चुकी हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए कहा कि हिंदी ने कई भारतीय भाषाओं को निगल लिया है। स्टालिन के अनुसार, भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख और मुंडारी जैसी भाषाएं अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी थोपने का विरोध जारी रहेगा क्योंकि हिंदी एक मुखौटा है और संस्कृत उसका छुपा चेहरा।


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