देशभर में आस्था और सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा आज, 25 अक्टूबर 2025 से 'नहाय-खाय' की पवित्र परंपरा के साथ शुरू हो गया है। लोक आस्था का यह पर्व 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगा। आज छठ के पहले दिन से ही व्रती कठोर उपवास और अनुशासन के साथ इस व्रत का आरंभ करते हैं, जिसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।
पवित्र स्नान और व्रत का संकल्प
'नहाय-खाय' का शाब्दिक अर्थ है 'स्नान करना और फिर खाना'। आज के दिन व्रती सबसे पहले किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय में स्नान करते हैं। यह स्नान शरीर और मन दोनों की शुद्धि का प्रतीक है। स्नान के बाद, व्रती सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसके साथ ही चार दिवसीय कठिन व्रत की औपचारिक शुरुआत हो जाती है। इस दिन विशेष रूप से लौकी-भात (चावल) और चने की दाल खाने का चलन है। यह भोजन पूर्णतः शुद्धता और पवित्रता के साथ तैयार किया जाता है, और एक बार भोजन ग्रहण करने के बाद, व्रती अगले दिन खरना तक जल भी ग्रहण नहीं करते।
पंचांग- 25.10.2025
युगाब्द -     5126 
संवत्सर -   सिद्धार्थ 
विक्रम संवत् -2082   
शाक:-     1947 
ऋतु __    शरद 
सूर्य  __   दक्षिणायन
मास __   कार्तिक 
पक्ष  __   शुक्ल पक्ष 
वार   __  शनिवार 
तिथि - चतुर्थी    27:47:40 
नक्षत्र    अनुराधा    07:50:44
योग    शोभन    30:44:34
करण    वणिज    14:34:14
करण    विष्टि भद्र    27:47:40
चन्द्र राशि      - वृश्चिक
सूर्य राशि     -  तुला
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩  विनायक चतुर्थी / दूर्वा गणपति व्रत 
🍁 अग्रिम पर्वोत्सव 🍁
👉🏻 गोपाष्टमी
        30/10/25 (गुरुवार)
👉🏻 आंवला नवमी
        31/10/25 (शुक्रवार)
👉🏻 देवप्रबोधिनी एकादशी
        01/11/25 (शनिवार)
👉🏻 त्रिस्पर्शा महाद्वादशी व्रत
        02/11/25 (रविवार)
👉🏻 प्रदोष व्रतम्
        03/11/25 (सोमवार)
👉🏻 वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रतम्
        04/11/25 (मंगलवार)
👉🏻 कार्तिक/ सत्य पूर्णिमा व्रतम्
        05/11/25 (बुधवार)
 यतो धर्मस्ततो जयः  || भेदभाव रहित हैं प्रभु || 
सर्व व्यापकता के कारण ईश्वरीय सत्ता भेदभाव के गुण से रहित है। जिस प्रकार सूर्यदेव द्वारा भेदभाव न करने पर भी बंद कमरे के भीतर रहने से धूप की प्राप्ति नहीं हो सकती, सूर्य किरणों की प्राप्ति के लिए आपको कमरे से बाहर आना ही पड़ेगा। ऐसे ही प्रभु का प्रेम तो भेदभाव रहित सबके लिए एक समान ही है लेकिन उनकी शरणागति को स्वीकार किए बिना उसकी प्राप्ति भी संभव नहीं है। भेदभाव मानवीय बुद्धि की उपज है। बिना सत्संगति के विवेक के अभाव में तर्क-बुद्धि का नाश नहीं हो सकता और जब तक बुद्धि, तर्कों को जन्म देती रहेगी तब तक हमारे भीतर उस ईश्वरीय सत्ता के प्रति कृतज्ञता का भाव भी नहीं उपज सकता है। सदैव धर्म-सत्कर्म में रत रहने वाला, संतों-वैष्णवों की सेवा करने वाला, प्रभु से प्रेम करते हुए भक्ति पूर्वक भजन करने वाला जीव ही प्रभु का प्रिय बन पाता है।
 
जय जय श्री सीताराम 👏
जय जय श्री ठाकुर जी की👏
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
राज पंडित-श्री राधा गोपाल मंदिर  (जयपुर)