रतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इन दिनों अमेरिका की Axiom Space के Ax-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर हैं। अंतरिक्ष में उन्हें 7 दिन हो चुके हैं, और वे अब तक के अनुभवों को देश से साझा कर रहे हैं। शुभांशु 14 दिनों के इस मिशन में अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ-साथ भारत के प्रधानमंत्री, अपने परिवार और स्कूल के विद्यार्थियों से संवाद कर चुके हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन धरती से करीब 400 किलोमीटर (248 मील) की ऊंचाई पर स्थित है। यानी शुभांशु शुक्ला इस वक्त धरती से लगभग 13 लाख फीट ऊपर जीवन जी रहे हैं – एक ऐसी जगह जहां गुरुत्वाकर्षण नहीं है, और हर काम को करना धरती से बिल्कुल अलग अनुभव है।
अंतरिक्ष की अनोखी दिनचर्या
एक स्कूल स्टूडेंट के सवाल के जवाब में शुभांशु शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष में सोना, खाना, चलना – हर चीज़ माइक्रोग्रैविटी की वजह से चुनौतीपूर्ण होती है। वे बताते हैं:
"हम लोग स्लीपिंग बैग में दीवार या छत से खुद को बांधकर सोते हैं। नहीं तो शरीर हवा में तैरता रहेगा और बार-बार चीजों से टकरा जाएगा। इसलिए खुद को सुरक्षित रखना होता है।"
उन्होंने बताया कि वे अपने साथ भारतीय भोजन भी लेकर गए हैं, जिसमें गाजर का हलवा, मूंग दाल हलवा और आम का रस शामिल है। यही नहीं, उन्होंने वहां के अमेरिकी और यूरोपीय सहयोगियों को भी भारतीय मिठाई खिलाई, जो उन्हें बेहद पसंद आई।
बीमार होने पर क्या होता है?
एक छात्र ने पूछा कि क्या अंतरिक्ष में बीमार हो सकते हैं? शुभांशु ने कहा:
"हां, अंतरिक्ष में भी हम बीमार हो सकते हैं। लेकिन हमारे पास हर बीमारी की दवाई होती है। और इलाज उसी तरह किया जाता है जैसे धरती पर घरों में किया जाता है – सहयोग, देखभाल और थोड़ा आराम।"
एंटरटेनमेंट और फिटनेस
अंतरिक्ष की दिनचर्या को तनावमुक्त बनाए रखने के लिए मनोरंजन जरूरी होता है। शुभांशु ने बताया कि वहां खास गेम्स खेले जाते हैं जो माइक्रोग्रैविटी में संभव हों। साथ ही, शरीर को फिट रखने के लिए एक्सरसाइज भी की जाती है:
"हमारे पास साइकिल है, लेकिन उसमें सीट नहीं है, क्योंकि माइक्रोग्रैविटी में सीट की जरूरत नहीं होती। हमें बस खुद को बांधकर पैडल चलाना होता है।"
स्पेस स्टेशन में रिसर्च
अंतरिक्ष में रहते हुए शुभांशु शुक्ला वैज्ञानिक शोध कार्यों में भी जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनकी टीम माइंड कंप्यूटर इंटरफेस और ब्रेन ब्लड सर्कुलेशन पर रिसर्च कर रही है। इस प्रोजेक्ट में उन्होंने यूरोपियन एस्ट्रोनॉट स्लावोस्ज उजनांस्की विस्नीवस्की और नासा की फ्लाइट इंजीनियर निकोल एयर्स के साथ काम किया।
ये रिसर्च भविष्य में मानव मस्तिष्क और मशीन के बीच बेहतर समन्वय बनाने में मदद करेगी – खासतौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़माने में यह बहुत अहम साबित होगा।
प्रधानमंत्री, परिवार और बच्चों से जुड़ाव
अंतरिक्ष में रहकर भी शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और देशवासियों को यह विश्वास दिलाया कि भारत का अंतरिक्ष भविष्य बहुत उज्ज्वल है।
उन्होंने केरल और लखनऊ के स्कूलों के छात्रों से वीडियो कॉल के माध्यम से संवाद किया। बच्चों के सवालों को सुनकर वे उत्साहित हुए और उन्हें प्रेरित किया कि वे भी विज्ञान को अपनाएं और भविष्य में अंतरिक्ष में जाएं।
"अंतरिक्ष से भारत बहुत सुंदर दिखता है। रात के समय भारत की चमकती रौशनी, हिमालय की बर्फीली चोटियां और गंगा की धारा मन को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।"
निष्कर्ष
शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ एक वैज्ञानिक मिशन नहीं, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि सीमाएं सिर्फ शरीर की नहीं होतीं – सपनों की भी होती हैं, और उन्हें पार किया जा सकता है। आने वाले 7 दिनों में वे और भी रिसर्च करेंगे और देश से जुड़े रहेंगे। भारत को उनके जैसे वैज्ञानिकों पर गर्व है, जो अंतरिक्ष में रहकर भी देश को दिल से जोड़े हुए हैं।