संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को कड़ा संदेश देते हुए उनसे 'ड्रामा नहीं, डिलीवरी' और 'नारा नहीं, नीति' पर ज़ोर देने का आह्वान किया। पीएम मोदी का यह सख्त संदेश स्पष्ट रूप से मानसून सत्र की तरह हंगामे की स्थिति से बचने और महत्वपूर्ण विधायी कार्यों को पारित कराने के लिए विपक्षी दलों से सहयोग प्राप्त करने पर केंद्रित था।
हार की निराशा से बाहर आएं
पीएम मोदी ने हाल ही में हुए बिहार चुनावों में विपक्ष को मिली हार पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि जो दल अशांत हैं, उन्हें "सदमे से बाहर" आना चाहिए।
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पराजय पर कटाक्ष: "कुछ दल हार स्वीकार ही नहीं कर सकते। मुझे उम्मीद थी कि समय के साथ, बिहार चुनाव हारने के बाद नेता खुद को संभाल लेंगे, लेकिन कल उनके बयानों से साफ़ ज़ाहिर है कि हार ने उन्हें पूरी तरह से विचलित कर दिया है।"
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नीति पर बल: उन्होंने कहा कि विपक्ष को संसद में ड्रामा करने की जगह डिलीवरी पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा, "जो भी नारे लगाना चाहता है, पूरा देश उनके साथ है। बिहार चुनावों में हार के दौरान आप यह कह चुके हैं, लेकिन यहाँ नीति पर ज़ोर होना चाहिए, नारों पर नहीं।"
सत्र, हताशा का मैदान न बने
प्रधानमंत्री मोदी ने सभी दलों से आग्रह किया कि शीतकालीन सत्र को एक रचनात्मक मंच के रूप में उपयोग किया जाए।
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रस्म नहीं: उन्होंने कहा, "संसद का यह शीतकालीन सत्र केवल एक रस्म नहीं है। देश की प्रगति को गति देने के प्रयास जारी हैं और यह शीतकालीन सत्र उसमें ऊर्जा भी भरेगा।"
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अहंकार और हताशा से बचें: पीएम मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि शीतकालीन सत्र हार से पैदा हुई हताशा का मैदान न बने और न ही जीत से पैदा हुए अहंकार का अखाड़ा बने।
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चर्चा का केंद्र: प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सत्र में इस बात पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए कि संसद देश के लिए क्या सोच रही है और देश के लिए क्या करने जा रही है। विपक्ष को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और चर्चा में मजबूत मुद्दे उठाने चाहिए।
लोकतंत्र की ताकत और सकारात्मक सोच
पीएम मोदी ने हालिया चुनावों में बिहार के मतदाताओं की उच्च भागीदारी की सराहना की, इसे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत बताया।
उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राजनीति में नैगेटिविटी ठीक नहीं है। "नैगेटिविटी को किनारे रखकर राष्ट्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।" उन्होंने विपक्ष को संदेश देते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि राजनीतिक दल बिहार में अपनी हार से उबर सकते थे, लेकिन स्पष्ट रूप से वे अभी भी अशांत हैं।
प्रधानमंत्री के इन संदेशों का सार यह है कि संसद को राष्ट्रीय विकास और लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों पर केंद्रित रहना चाहिए, न कि चुनावी हार-जीत की हताशा या अहंकार का मंच बनना चाहिए।