महाराष्ट्र की राजनीति में 'मुंबई महानगरपालिका' (BMC) का चुनाव किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं माना जाता। इसे 'सत्ता का सेमीफाइनल' कहा जाता है। आगामी बीएमसी चुनावों से पहले मुंबई का सियासी पारा तब चढ़ गया, जब शिवसेना (UBT) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो गई। पिछले एक महीने से जारी नेताओं की बैठकें बेनतीजा रही हैं, जिसके बाद अब पूरी नजरें उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की सीधी बातचीत पर टिकी हैं।
विवाद की जड़: माहिम, विक्रोली और शिवडी
मनसे ने बीएमसी सीटों के बंटवारे में उन क्षेत्रों पर अपना दावा ठोका है, जिन्हें शिवसेना (UBT) अपना गढ़ मानती है। विवाद मुख्य रूप से तीन विधानसभा क्षेत्रों— माहिम, विक्रोली और शिवडी —के अंतर्गत आने वाली नगरसेवक सीटों को लेकर है।
विवाद के मुख्य बिंदु:
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मौजूदा विधायक: इन तीनों ही क्षेत्रों में फिलहाल शिवसेना (UBT) के विधायक काबिज हैं।
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मनसे का दावा: राज ठाकरे की पार्टी का तर्क है कि इन क्षेत्रों में उनका जमीनी आधार मजबूत हुआ है और वे यहां से बेहतर उम्मीदवार दे सकते हैं।
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शिवसेना (UBT) का रुख: उद्धव गुट का रुख बेहद कड़ा है। उनका स्पष्ट कहना है कि "जहां हमारे विधायक हैं, वहां की सीटें छोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता।" शिवसेना (UBT) चाहती है कि मनसे उन सीटों पर दावेदारी करे जहां वर्तमान में विरोधी दलों (बीजेपी या शिंदे गुट) का कब्जा है।
टेबल पर विफल रही नेताओं की बातचीत
सीटों के इस जटिल गणित को सुलझाने के लिए दोनों दलों ने अपने दिग्गज नेताओं की टीम उतारी थी।
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शिवसेना (UBT) की ओर से: अनिल परब, वरुण सरदेसाई और सूरज चव्हाण।
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मनसे की ओर से: बाला नांदगांवकर और नितिन सरदेसाई।
पिछले एक महीने से लगातार हो रही चर्चाओं के बावजूद, दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। शिवसेना (UBT) के नेताओं का 'अड़ियल रवैया' मनसे को रास नहीं आ रहा है, वहीं शिवसेना (UBT) को डर है कि अगर उन्होंने अपने मौजूदा गढ़ों में सीटें छोड़ीं, तो संगठन के भीतर असंतोष पैदा हो सकता है।
अब 'ठाकरे बंधुओं' पर टिकी उम्मीदें
जब जमीनी स्तर के नेताओं के बीच बात नहीं बनी, तो अब गेंद ठाकरे परिवार के पाले में है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे स्वयं बैठकर इस गतिरोध को खत्म करेंगे।
यह बातचीत केवल सीटों के बंटवारे के लिए ही नहीं, बल्कि दोनों भाइयों के राजनीतिक भविष्य के तालमेल के लिए भी महत्वपूर्ण है। अगर दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो वे मुंबई में एक मजबूत 'मराठी कार्ड' खेल सकते हैं, जो सत्ताधारी गठबंधन (महायुति) के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। लेकिन अगर बातचीत विफल रही और दोनों अलग-अलग लड़े, तो वोटों का बंटवारा सीधा विरोधियों को फायदा पहुंचाएगा।
निष्कर्ष: चुनौती और अवसर
बीएमसी चुनाव 2025 दोनों दलों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। शिवसेना (UBT) के लिए यह अपनी खोई हुई विरासत और मुंबई पर अपने एकाधिकार को साबित करने का मौका है, वहीं मनसे के लिए यह अपनी प्रासंगिकता और ताकत दिखाने का अवसर है।
क्या 'ठाकरे ब्रांड' के ये दो दिग्गज नेता अपने मतभेदों को भुलाकर एक व्यावहारिक समझौते पर पहुंच पाएंगे? मुंबई की जनता और राजनीतिक विश्लेषक इस ऐतिहासिक मुलाकात का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।