बांग्लादेश की राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी (BNP) की अध्यक्ष और तीन बार देश की प्रधानमंत्री रह चुकीं बेगम खालिदा जिया का 80 वर्ष की आयु में ढाका में निधन हो गया। उनके निधन की खबर से न केवल बांग्लादेश, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में शोक की लहर दौड़ गई है। खालिदा जिया पिछले लंबे समय से कई गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। राजकीय अतिथि गृह 'जमुना' में हुई विशेष बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया कि खालिदा जिया का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
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अंतिम संस्कार: बुधवार को जोहर की नमाज के बाद मानिक मियां एवेन्यू में उनका जनाजा पढ़ा जाएगा।
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दफन प्रक्रिया: उन्हें ढाका के शेर-ए-बांग्ला नगर स्थित जिया उद्यान में उनके पति और पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की कब्र के बगल में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
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विदेशी प्रतिनिधियों की उपस्थिति: उनकी अंतिम यात्रा में कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं के शामिल होने की संभावना है, जिनमें भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है।
एक ऐतिहासिक अध्याय का समापन
खालिदा जिया का निधन केवल एक नेता का जाना नहीं है, बल्कि बांग्लादेश की उस राजनीतिक गाथा का अंत है जिसने देश की लोकतांत्रिक पहचान को गढ़ा। 1945 में अविभाजित भारत के जलपाईगुड़ी (अब पश्चिम बंगाल) में जन्मी खालिदा का परिवार बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान चला गया था।
1981 में उनके पति जियाउर रहमान की हत्या के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा। एक 'घरेलू महिला' से 'देश की पहली महिला प्रधानमंत्री' बनने तक का उनका सफर संघर्षों और संकल्पों से भरा रहा। उन्होंने सैन्य शासन के खिलाफ लोकतंत्र की बहाली के लिए जो लड़ाई लड़ी, उसे बांग्लादेशी इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।
राजनीतिक भविष्य और तारिक रहमान
खालिदा जिया के निधन के बाद अब सबकी निगाहें उनके बेटे और बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान पर टिकी हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय बांग्लादेश में पैदा हुई सहानुभूति की लहर का सीधा लाभ तारिक रहमान को मिल सकता है।
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तारिक रहमान का नेतृत्व: पिछले 17 वर्षों से निर्वासन में रहने के बावजूद पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत है। वर्तमान परिस्थितियों में वे प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार बनकर उभरे हैं।
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पार्टी की रणनीति: बीएनपी फिलहाल किसी भी गठबंधन के बजाय अपनी स्वतंत्र राजनीतिक जमीन मजबूत करने पर ध्यान दे रही है।