2025 की वैश्विक कूटनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। ऑस्ट्रेलिया ने ईरान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए हैं, जो कि दोनों देशों के लंबे, लेकिन तनावपूर्ण रिश्तों के अंत का प्रतीक बन गया है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने ऐलान किया है कि ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड को आतंकी संगठन घोषित कर दिया गया है और ईरानी राजदूत को देश से निष्कासित किया गया है।
यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका और इजरायल के साथ ईरान के संबंध पहले ही बेहद तनावपूर्ण हो चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया का यह कदम न केवल ईरान के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका है, बल्कि यह पश्चिमी दुनिया के रुख को भी दर्शाता है कि वह ईरान के आक्रामक व्यवहार और मानवाधिकार हनन को अब और बर्दाश्त नहीं करेगी।
ईरान-ऑस्ट्रेलिया: एक लंबे रिश्ते का अंत
1968 में स्थापित हुए ईरान-ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक संबंध धीरे-धीरे व्यापार, संस्कृति और सहयोग तक बढ़े, लेकिन इस रिश्ते की नींव कभी बहुत मजबूत नहीं रही। 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही ऑस्ट्रेलिया ने दूरी बनाना शुरू कर दिया था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम, कट्टरपंथी रुख और अमेरिका विरोधी नीतियों के चलते पश्चिमी देशों के साथ ईरान के संबंध खराब होते गए।
2022 में महसा अमिनी की मौत के बाद ईरान में हुए विरोध प्रदर्शनों पर सरकार की कठोर कार्रवाई की ऑस्ट्रेलिया ने निंदा की थी। इसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव तेज हो गया। ऑस्ट्रेलिया ने ईरान के कई अधिकारियों पर प्रतिबंध भी लगाए थे।
इजरायल-ईरान युद्ध और ऑस्ट्रेलिया का रुख
2025 में इजरायल और ईरान के बीच छिड़े युद्ध में ऑस्ट्रेलिया ने खुलकर इजरायल का समर्थन किया। यही बात ईरान को सबसे ज्यादा खटकी। ऑस्ट्रेलिया और इजरायल के बीच गहरे राजनयिक और सैन्य संबंध हैं, और यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया ने अपने ईरानी नागरिकों को निष्कासित किया और अब दूतावास बंद कर दिया।
ईरान ने ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बताया है। जबकि ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि यह निर्णय मानवाधिकारों की रक्षा और वैश्विक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संगठनों में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका
ऑस्ट्रेलिया ना सिर्फ अमेरिका और यूके का अहम सहयोगी है, बल्कि AUKUS (ऑस्ट्रेलिया-यूके-अमेरिका) और QUAD (ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान-अमेरिका) जैसे संगठनों का हिस्सा भी है। ये संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और ईरान जैसे देशों के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं।
ईरान, खासकर QUAD और AUKUS जैसे पश्चिमी गठबंधनों को खुले तौर पर चुनौती देता रहा है। ऑस्ट्रेलिया की बढ़ती सैन्य और कूटनीतिक सक्रियता से ईरान पहले से ही असहज था।
आगे क्या?
ईरान के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया का यह फैसला आने वाले समय में यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देशों को भी सख्त कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकता है। वहीं, ईरान अब चीन और रूस जैसे देशों के करीब जाने की कोशिश कर सकता है ताकि पश्चिमी दुनिया के बढ़ते दबाव का मुकाबला किया जा सके।
ऑस्ट्रेलिया ने साफ कर दिया है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों से कोई समझौता नहीं करेगा, चाहे इसके लिए किसी देश से संबंध क्यों न तोड़ने पड़ें।
निष्कर्ष
ईरान और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों में यह टूट दुनिया को दो ध्रुवों में बांटने की दिशा में एक और कदम है। जहां एक ओर लोकतांत्रिक देश समान मूल्यों के लिए एकजुट हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ईरान जैसे देश अपने आक्रामक रुख से अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। यह घटनाक्रम वैश्विक राजनीति में आने वाले समय के लिए नया समीकरण तय कर सकता है।