अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पाकिस्तान द्वारा नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किए जाने की खबरें इन दिनों चर्चा में हैं। हालांकि इस नामांकन को कई लोग पाकिस्तान की राजनीतिक चालाकी के रूप में देख रहे हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने ट्रंप की ‘दुखती रग’ पर हाथ रखकर अपनी सियासी साख बढ़ाने की कोशिश की है, क्योंकि ट्रंप स्वयं इस पुरस्कार के लिए बेहद इच्छुक हैं। ट्रंप की चाहत को भांपते हुए पाकिस्तान ने उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया, ताकि ट्रंप इस सम्मान को पाने के लिए कोशिश करें और पाकिस्तान को भी इसका राजनीतिक लाभ मिल सके।
ट्रंप का ट्रूथ सोशल पोस्ट: ‘मुझे नोबल प्राइज नहीं मिलेगा’
डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे पर अपने ट्रूथ सोशल अकाउंट पर एक लंबा पोस्ट लिखा है, जिसमें उन्होंने अपनी नोबल शांति पुरस्कार न मिलने की नाराजगी जाहिर की। ट्रंप ने लिखा कि उन्होंने कई बड़े संघर्षों को शांत किया, लेकिन फिर भी उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं मिला। उन्होंने कांगो और रवांडा के बीच शांति समझौते, भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकना, सर्बिया और कोसोवो के संघर्ष को समाप्त करना, मिस्र और इथियोपिया के बीच शांति कायम करना और मध्य पूर्व में अब्राहम समझौतों को उदाहरण के तौर पर पेश किया।
ट्रंप ने कहा कि वे रूस-यूक्रेन और इजरायल-ईरान के बीच युद्ध विराम कराने की क्षमता रखते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कोई सम्मान नहीं मिलेगा। उनका कहना था, “मैं चाहे कुछ भी करूं, मुझे नोबल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा। और यह बात मुझे मायने रखती है।”
ट्रंप के ट्वीट का सारांश
ट्रंप ने अपने ट्वीट में साफ कहा कि उन्होंने वैश्विक स्तर पर कई युद्ध रोकवाए हैं, लेकिन इस नेक काम के लिए उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला। उन्होंने अमेरिका की भूमिका और शांति स्थापना की अपनी कोशिशों का हवाला देते हुए बताया कि लोग जानते हैं कि वे युद्ध विराम में कितना योगदान दे सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद सम्मान नहीं मिलना उनके लिए निराशाजनक है।
पाकिस्तान के नामांकन के पीछे की राजनीति
पाकिस्तान ने डोनाल्ड ट्रंप को नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित कर एक राजनीतिक संदेश दिया है। यह नामांकन पाकिस्तान की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है जिसमें वे अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना चाहते हैं। यह कदम खासकर तब आया है जब ट्रंप और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों में कुछ ताज़ा गतिविधियां देखने को मिली हैं।
ट्रंप की मुलाकात पाकिस्तानी सेना प्रमुख से
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से वाशिंगटन में मुलाकात की। यह मुलाकात व्हाइट हाउस में एक औपचारिक लंच के दौरान हुई, जिसे ‘लंच डिप्लोमेसी’ कहा गया। ट्रंप ने इस अवसर पर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध न लड़ने के फैसले के लिए पाकिस्तान की सराहना की। मीडिया ब्रीफिंग में व्हाइट हाउस स्पीकर ने यह भी बताया कि पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया है, और इसी के लिए असीम मुनीर को अमेरिका बुलाया गया था।
सियासी गलियारों में चर्चा और ट्रोलिंग
डोनाल्ड ट्रंप और असीम मुनीर की यह मुलाकात और ट्रंप के लिए पाकिस्तान का नोबल पुरस्कार नामांकन दुनियाभर के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। कई जगहों पर इसे ‘राजनीतिक चाल’ और ‘ट्रंप की महत्वाकांक्षा का फायदा उठाने वाला कदम’ बताया जा रहा है। साथ ही, सोशल मीडिया और मीडिया हाउसों पर ट्रंप की इस बैठक और नामांकन को लेकर ट्रोलिंग भी हुई है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप को नोबल शांति पुरस्कार के लिए पाकिस्तान द्वारा नामांकित किए जाने का मामला केवल एक राजनीतिक रणनीति से ज्यादा कुछ नहीं लगता। ट्रंप की खुद की महत्वाकांक्षा और शांति स्थापित करने के अपने दावों के बीच यह नामांकन पाकिस्तान की ओर से एक चालाकी की तरह देखा जा रहा है। जबकि ट्रंप शांति स्थापित करने की अपनी भूमिका को लेकर निराशा जता चुके हैं,