मुंबई, 4 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) 20वीं सदी के मध्य में, कण भौतिकी की दुनिया एक "कणों के चिड़ियाघर" की तरह अराजक हो गई थी। नए कणों की खोजों की बाढ़ ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया था। जहाँ पहले माना जाता था कि दुनिया केवल प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बनी है, वहीं अब सैकड़ों नए कण सामने आ गए थे। इस अराजकता को व्यवस्थित करने के लिए, वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी सिद्धांत विकसित किया, जिसे स्टैंडर्ड मॉडल के नाम से जाना जाता है।
क्या है स्टैंडर्ड मॉडल?
1960 और 1970 के दशक में विकसित हुआ यह मॉडल, ब्रह्मांड के सभी ज्ञात प्राथमिक कणों को वर्गीकृत करता है और चार में से तीन मौलिक बलों - विद्युत चुम्बकीय, कमजोर और मजबूत संपर्क - का वर्णन करता है। यह मॉडल ब्रह्मांड के मूलभूत निर्माण खंडों को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित करता है: क्वार्क, लेप्टॉन और बोसॉन। क्वार्क और लेप्टॉन को "पदार्थ कण" माना जाता है, जबकि बोसॉन "बल वाहक" हैं।
हिग्स बोसॉन और अधूरापन
2012 में हिग्स बोसॉन की खोज ने इस मॉडल को पूरा करने में मदद की, क्योंकि इसने समझाया कि कणों को द्रव्यमान कैसे मिलता है। इस खोज ने दशकों के शोध और सैद्धांतिक कार्य को सही साबित किया। हालांकि, अपनी सफलता के बावजूद, स्टैंडर्ड मॉडल अधूरा है। यह गुरुत्वाकर्षण, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं की व्याख्या नहीं करता, और न ही यह बता पाता कि न्यूट्रिनो में द्रव्यमान क्यों होता है।
निष्कर्ष
स्टैंडर्ड मॉडल ने उप-परमाणु दुनिया को समझने में एक अभूतपूर्व क्रांति लाई है, लेकिन यह अभी भी भौतिकी के रहस्यों को पूरी तरह से सुलझा नहीं पाया है। यह हमें ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ बताता है, लेकिन भविष्य के शोधकर्ताओं के लिए कई सवाल भी छोड़ जाता है।