मुंबई, 06 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती दी थी। सिंगल जज बेंच ने सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें बिना अनुमति सार्वजनिक स्थानों पर RSS की शाखा लगाने और निजी संगठनों की गतिविधियां संचालित करने पर बैन लगाया गया था। सरकार ने इसी रोक को हटाने के लिए याचिका दायर की थी।
जस्टिस एस.जी. पंडित और गीता के.बी. की डिवीजन बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को इस आदेश पर लगी रोक हटाने के लिए सिंगल जज के पास ही अपील करनी चाहिए। दरअसल, धारवाड़ बेंच ने 28 अक्टूबर को सरकार के उस आदेश पर स्टे लगा दिया था, जिसमें सरकारी परिसरों या सार्वजनिक जगहों पर बिना अनुमति दस से अधिक लोगों के इकट्ठे होने या RSS शाखा आयोजित करने पर रोक लगाई गई थी।
इससे पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था कि उनकी सरकार इस आदेश को चुनौती देने के लिए डिवीजन बेंच में अपील करेगी। राज्य सरकार का यह निर्णय मंत्री प्रियांक खड़गे के सुझाव के बाद आया था। उन्होंने कैबिनेट से अनुरोध किया था कि सार्वजनिक स्थानों पर RSS की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। इसके बाद कैबिनेट ने 18 अक्टूबर को यह फैसला लिया था कि किसी भी सरकारी या सार्वजनिक परिसर में बिना अनुमति शाखा या पथ संचलन नहीं किया जा सकेगा।
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस नागप्रसन्ना ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा था कि क्या इस आदेश के पीछे सरकार का कोई और उद्देश्य है। कोर्ट ने राज्य सरकार को दलीलें पेश करने के लिए एक दिन का समय दिया था और गृह विभाग, DGP और हुबली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किए थे।
यह याचिका हुबली की पुनश्चितना सेवा संस्था ने दायर की थी। संस्था की ओर से सीनियर एडवोकेट अशोक हरनहल्ली ने तर्क दिया कि सरकार का यह आदेश नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि इस नियम के तहत अगर किसी पार्क या मैदान में दस से ज्यादा लोग इकट्ठा होते हैं तो उसे गैर-कानूनी माना जाएगा, जबकि पहले से पुलिस एक्ट में ऐसे प्रावधान मौजूद हैं।
कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी आदेश के जरिए नागरिकों से संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं छीने जा सकते। पिछले कुछ समय से राज्य में RSS की शाखाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठ रही थी, जिसके बाद सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया था, लेकिन अब अदालत ने इसे असंवैधानिक बताया है।