बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन, सत्ता में वापसी की उम्मीद के साथ उतरा था, लेकिन परिणाम उसके लिए एक बुरे सपने की तरह रहे। इस चुनाव में महागठबंधन ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के मुख्य जनाधार माने जाने वाले यादव और मुस्लिम (M-Y) वोटर्स का समीकरण अब उनके साथ नहीं रहा। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी महागठबंधन का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, और कई जिलों में उसका खाता तक नहीं खुल सका।
आरजेडी और कांग्रेस को भारी नुकसान
महागठबंधन में शामिल प्रमुख दलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है:
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आरजेडी (RJD): पिछले चुनाव (2020) में 75 सीटों पर जीत हासिल करने वाली आरजेडी को इस बार 50 सीटों का भारी नुकसान हुआ और वह महज 25 सीटों पर सिमट गई।
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कांग्रेस (Congress): पिछली बार 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार केवल 6 सीटों पर सिमट गई।
अन्य सहयोगी दलों को भी खासा नुकसान उठाना पड़ा है, जिससे गठबंधन की सामूहिक ताकत बहुत कम हो गई है।
सीमांचल में पिछड़ा महागठबंधन
मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल के परिणाम महागठबंधन के लिए सबसे अधिक निराशाजनक रहे। सीमांचल के 4 जिलों (पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज) में कुल 24 सीटें हैं।
| वर्ष |
महागठबंधन की सीटें |
NDA की सीटें |
अन्य (AIMIM) |
| 2015 |
18 |
5 |
1 |
| 2020 |
7 |
12 |
5 |
| वर्तमान |
5 |
14 |
5 |
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2015 का संदर्भ: 2015 में, जब जेडीयू भी महागठबंधन का हिस्सा था, गठबंधन ने 24 में से 18 सीटें जीती थीं।
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वर्तमान प्रदर्शन: इस बार महागठबंधन केवल 5 सीटों पर सिमट गया, जबकि एनडीए ने 14 सीटें झटक लीं। सबसे बड़ी विफलता यह रही कि मुस्लिम बहुल किशनगंज जिले में भी महागठबंधन अपना खाता नहीं खोल पाया।
ओवैसी की AIMIM ने बिगाड़ा खेल
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने पिछले चुनाव की तरह इस बार भी सीमांचल में महागठबंधन के लिए खेल बिगाड़ दिया। AIMIM ने अपना प्रदर्शन दोहराते हुए सीमांचल में 5 सीटों (जोकीहाट, बहादुरगंज, अमौर, बैसी और कोचाधामन) पर कब्जा जमा लिया। इन सीटों पर AIMIM की मौजूदगी से मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला।
16 जिलों में खाता तक नहीं खुला
इस चुनाव में महागठबंधन के लिए सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह रहा कि वह बिहार के 16 जिलों में अपना खाता तक नहीं खोल सका। जबकि 2020 के चुनाव में एनडीए के लिए 8 जिलों में खाता नहीं खुला था।
ये चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से इस ओर इशारा करते हैं कि आरजेडी और कांग्रेस से मुस्लिम वोटर्स लगातार दूर हो रहे हैं। M-Y समीकरण की यह विफलता महागठबंधन के लिए एक बड़ी चेतावनी है और यह दिखाता है कि बिहार की राजनीति में अब जातिगत समीकरणों से परे जाकर मतदाताओं ने एनडीए और नीतीश कुमार के नेतृत्व पर अपना भरोसा जताया है।